देहरादून: राजाराम मोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। उन्होंने बचपन से ही सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राजा राम मोहन राय एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने पारंपरिक हिंदू परंपरा को तोड़ते हुए महिलाओं के हित में सामाजिक कार्य किए। उन्होंने हमारे समाज में प्राचीन समय से चली आ रही सती प्रथा और बाल प्रथा से महिलाओं को निजात दिलाया। आज उऩकी 186वीं पुण्य तिथी है। इस मौके पर उनकी ओर से देश के लिए किए गए कामों को याद ना करना एक ज्यादती होगी। आज भी भारत के इतिहास के पन्नों में उनका नाम देश में सबसे पहले सत्ती प्रथा का विरोद्ध करने वाले प्रथम व्यक्ति के रुप में दर्ज है, इसके अलावा भी उन्होंने देश के हित के लिए कई ऐसे काम किए जिनके लिए उन्हें आज भी जाना जाता है।
बता दें कि राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने देश के हित में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़ कर राष्ट्रीय समाज के काम में जुट गए थे। भारत को अंग्रेजों से आजाद करने के साथ ही उन्होंने दोहरी लड़ाई भी लड़ी थी। वो लड़ाई उनकी अपने ही देश के नागरिकों से थी। उस समय हमारा समाज अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़ा हुआ था। उन्होंने बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड और प्रदा प्रथा को जड़ से खत्म करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया था। समाज के प्रति धर्म की इस लड़ाई में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता की थी।
राजाराम मोहन राय एक कट्टरवादी हिंदू परिवार में पैदा हुए थे। समाज में इस प्रकार की कुरुतियों को जड़ से खत्म करने के लिए उनका अपने पिता हमेशा मतभेद होता रहता था। जिसके बाद पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए पटना भेज दिया।मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फ़ारसी का काफी गहरा ज्ञान हो गया था। यहां भी वो हिन्दू परंपराओं और प्रथाओं को तर्क की कसौटी पर परखते रहे और सवाल उठाते रहे। समाज के प्रति इस तरह की धरणा रखने से उनका परिवार उनसे परेशान था, जिसके बाद घर वालों ने उनकी शादी करवा दी, लेकिन इसके बाद भी समाज के लोगों के साथ उनकी यह लड़ाई चलती रही।
लोगों को जागरुक करने और समाज को इस कुप्रथा से बाहर निकालने के लिए राजा राम मोहन राय ने 1814 में आत्मीय सभा, और फिर 1828 में ब्रह्मसमाज की स्थापना की। इन सभाओं को जरिए उऩ्होंने समाज के लोगों को जागरुक करने की कोशिश की। आखिरकार वह समाज से सती प्रथा जैसी कुरिती का खत्म करने में सफल हो गए। समाज के प्रति और देश को आजाद करने की उनकी यह लड़ाई आखिरी सांस तक चलती रही। ब्रिटेन स्थित ब्रिस्टल के समीप स्टाप्लेटन में 27 सिंतबर 1833 को राजा राममोहन राय का निधन हो गया।